अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, February 18, 2014

तक़लीफ़ की सिलवटें

तक़लीफ़ की सिलवटें 
वक़्त की इस्त्री 
मिटा तो देती है, 
मगर..... कम्बख़त 
वक़्त बहुत लेती है 

आपके अपने 
इसे दूर करना चाहते हैं 
पर अपनी तकलीफ़ 
निहायत अपनी होती है 

ऐसे में ख्याल यही कहता है के 

अपनों से भरी दुनिया में 
आपका का 
अपने सिवा 
अपना कोई नहीं होता !

~स-रोज़~

2 comments:

  1. भाव पूर्ण अभिव्यक्ति ... ये भी एक दृष्टिकोण है ...

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया दिगंबर जी

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