अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, February 13, 2014

"यकीन "

ज़मीं इक अंधा कुआँ है 
और चाँद 
उसका संकरा मुहाना 
रौशनी की मुन्तजिर 
सभी की नज़रें हैं ऊपर 
कोई है जो अपने हाथों से 
ज़मीं खोद रहा है 
उसे यकीं है 
रौशनी यहीं से निकलेगी 
यकीनन निकलेगी

ज़मीं अपने गर्भ में 
अज़ल से है आग छुपाये !!!

~s-roz~

4 comments:

  1. उम्दा लिखा है..

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया अमृता जी

      Delete
  2. बहुत ही गहरे भावों को समेटे हुए लाजबाव प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  3. प्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति.......

    ReplyDelete