अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, November 1, 2012

"कह देते मुझसे एक बार "

"मेरा स्नेह,मेरी पूजा,
मात्र प्राक्कथन था तुम्हारे लिए
जल रही थी शंकाएं जब मन में
कह देते मुझसे एक बार
मै उपलब्ध थी,शमन के लिए.............!

ह्रदय कुंड में स्वाहा किया,
निज अहंकार तुम्हारे लिए
जब दिनोंदिन शेष होती रही प्रेम समिधा
कह देते मुझसे एक बार मैं उपलब्ध थी हवन के लिए ..............!

संबंधो के मंथन में
सदा अमृत ही चाहा तुम्हारे लिए
किन्तु अमृत पान कहाँ सरल है गरल के बिना
कह देते मुझसे एक बार
मैं उपलब्ध थी,आचमन के लिए ..........!
~s-roz~

4 comments:

  1. उपलब्धता की पहचान से रहे दूर
    एक बार पूछते , मैं थी बताने के लिए ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार रश्मि जी !

      Delete
  2. बहुत अच्छा लिखा है सरोज.संबंधों की असलियत ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार निधि !!

      Delete