अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, May 18, 2012

"मेरा वजूद, "

गर मेरा वजूद,
वो पत्थर है !
जो आधी ऊपर पड़ी,
आधी जमीन में गड़ी हो!
जिससे हर रहगुज़र ठोकर खाए
और ठोकर मार जाय !
तो ऐसे में "मैं "......
या तो गड़ ही जाउंगी
या उखड़ ही जाउंगी
पर इतना तय है ...
.ना ठोकर खाऊँगी
और ना ठोकर लगाउंगी !!
~s-roz ~

8 comments:

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    1. आभार आपका यशवंत जी

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  2. बहुत बढ़िया सकारात्मकता से भरी प्रस्तुति ..
    ठोकर खाकर ही इंसान कठोर बनता है और फिर हर मुशीबत का सामना करना सीखता जाता है ..

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    1. आभार आपका कविता जी

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  3. सुंदर रचना और सुंदर शब्द चयन ।

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    1. आभार आपका संजय जी

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    1. आभार आपका सुषमा जी

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