अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, September 18, 2011

"मैं पतंग हूँ"

कई रूपों में,कई रंगों में
कई रिश्तों,कई भावों में
सभी कर्मों से
अन्तरंग हूँ !
कहीं बंधती हूँ,कहीं कटती हूँ
कहीं उड़ती हूँ,कही गिरती हूँ
पीड़ा डोर से बंधी
पतंग हूँ !
~~~S-ROZ~~~

4 comments:

  1. बहुत खूब ... सुन्दर प्रस्तुति

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  2. सुंदर अभिव्यक्ति ...

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  3. संगीता जी एवं सुनील कुमार जी आपकी सुन्दर प्रतिक्रियाओं का ह्रदय से आभार !!

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  4. डोर से बंधने से मुझे गुरेज़ नहीं ...पर दूसरे के हाँथ में डोर हो यह मुझे मन्जूर नहीं

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