अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, July 27, 2011

तुम्हारे 'शब्द'

काश 'तुम' अपने अहम् के अधीन  न होते
मेरे  'शब्द' तुम्हारे लिए महत्वहीन न होते
अब तो हमने आँसुओं का खारा सागर पी लिया है
बीता, तपता रेगिस्तान  सा  'समय'   जी लिया है
अब आए हुए तुम्हारे  'शब्द' मेरे लिए भावहीन है
शायद अब 'हम' भी अपने अहम् के अधीन हैं
~~~S-ROZ~~~

4 comments:

  1. अहं....अधिकतर रिश्तों के टूटने की पहली वजह...
    बहुत सुन्दर लिखा है ,आपने...सच्चाई बताती रचना .

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  2. .




    आदरणीया सरोज जी
    नमस्कार !

    आपके ब्लॉग पर अच्छी रचनाएं हैं , आ'कर बहुत अच्छा लगा ।

    प्रस्तुत रचना तुम्हारे शब्द के लिए भी आपको साधुवाद !
    तपता रेगिस्तान-सा समय नया , अछूता और व्यापक बिंब है…

    आपकी सभी रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. निधि जी../संजय भाष्कर जी/राजेंदर स्वर्णकार जी आप सभी आदरणीय जानो का ह्रदय से आभार!!

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