अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, December 1, 2010

"मन के उदगार"

 ‎"मन की,यही 'आकांक्षा'
बनकर तुम्हारी"सहचरिणी"
प्रीत के पल्लव संचित करूँ
घर आँगन में बसूं !!!!
रहूँ तुम्हारी"अनुगामिनी
मै,सदा !सदा !,...'सर्वदा'.!!...",
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"मेरा 'स्नेह' ,मेरी 'पूजा'
मात्र 'प्राक्कथन' है तुम्हारे लिए
..........
'मन' की 'शंकाएं' जलने लगे जब
मै 'उपलब्ध' हूँ 'हवन' के लिए " 
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"तेरी 'मुक़द्दस यादों' को छिपा लेती हूँ दिल में अपने
'गुनाहों' की तरह
'तन्हाई' की कड़ी धुप में तेरी यादों के साए हैं
पनाहों' की तरह "........
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गर जाने होते के
'मसर्रत' भी लेती है सूद 'महाजन' की तरह
उस रोज़ हम यूँ पुरजोर ना 'हसे' होते "
'मसर्रत' = ख़ुशी 
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"यूँ तो ..तन्हाई के ....ठहरने के...... ठिकाने हैं, बहुत
पर... उसे महफूज़...मेरा ही 'घर '..... लगता है
"यूँ तो... खुश रहने के ..... तरीके हैं बहुत
पर खुश रहने से......जाने क्यूँ.... 'डर'लगता है"
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जो तुमने कही!...... वो भी 'सच 'है
जो हमने कही!......वो भी 'सच' है
दरम्यां हमारे, सिर्फ सच' ही 'सच' है
फिर 'झूठ' कहाँ से ..'दर-पेश' आया"
...
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ओढ़ रखीं है,हमने जिस्मों में 'ऐब की चादर' ऐसे
छुपी हो 'रेत की परतों ' में 'सीपियाँ' जैसे "
"जो मेरे 'ऐब' छुपा दे मै वोही 'चादर' मांगू
जो 'सीपियों' को खुद में समो ले मै वो 'लहर' मांगू
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"कभी कभी ये एहसास होता है के "थम सी गयी है 'जिंदगी',
उस सूखे 'दरख़्त' की मानिंद,जो खड़ी तो है अपनी जगह,
पर ,रेल के हर मुसाफिर को वो भागती नज़र आती है"
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‎"बिना मौसम ... ये ठंडी 'बारिश?
'वाह!! ! शायद 'ओले' भी पड़ेंगे ,
हमारे निकलेंगे 'शाल' पश्मिनों के
फसल बर्बाद!!,खेतिहर क्या करेंगे ?
अगले साल चावल के'दाम' फिर बढ़ेंगे
...धान के बोरे' 'गोदामों' में फिर 'सड़ेंगे'
और बेचारे किसान,भुखमरी से फिर'मरेंगे' 
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‎~~~S -ROZ ~~~

1 comment:

  1. बहुत अच्छा लिखा है किस-किसकी तारीफ करूं...खबूसूरत भावाभिव्यक्ति

    यहां भी आइए...
    http://veenakesur.blogspot.com/

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