अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, April 17, 2013

"अभी जो आया भूकंप"

अभी जो आया भूकंप, काँप गयी धरती भी
रौंदा गया है इतना के हांप गयी धरती भी !

हमारी कारस्तानियों का कोई हिसाब नहीं
इसका लेखा जोखा नाप गयी धरती भी !

पुत्र कुपत्र भले हो माता कुमाता नहीं होती
खुराफातों को ममता से ढांप गई धरती भी !

देखकर आतंक के साए अपने बदन पर 
विश्वशांति के मन्त्र जाप गई धरती भी !

जब होगा असंतुलन धरा पर,बरसेगा कोप
ऐसा सभी को प्रेम से श्राप गई धरती भी !!!
~s-roz~

2 comments:

  1. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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    1. सादर आभार संजय जी !

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