अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, April 29, 2012

Re: "मुद्दत हुई "


On Wed, Oct 5, 2011 at 1:25 PM, saroj singh <sarojdeva28@gmail.com> wrote:
बहुत मशरूफ सा रहने लगा है या के कोई रंज है
मुद्दत हुई कायदे से कोई हिचकी आए!
ना आफताब निकला,ना शमा जली ना ही चाँद है
मुद्दत हुई कायदे से घर में रौशनी आए !
ना ही दिलखुश मंजर है,ना ही तेरी गुलज़ार बातें हैं
मुद्दत हुई कायदे से लब पे कोई हँसी आए!
रुसवा जो हुई ख़ुशी मेरे दर से और रातें भी ग़मगीन है
मुद्दत हुई कायदे से मेरी जिंदगी में जिंदगी आए !
~~~S-ROZ~~~


3 comments:

  1. ना आफताब निकला,ना शमा जली ना ही चाँद है
    मुद्दत हुई कायदे से घर में रौशनी आए !

    बहुत खूब ... हिचकी आई क्या ?

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  2. मुद्दत हुई कायदे से लैब पे कोई हंसी आए...बहुत खूबसूरत!!

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  3. मुद्दत हुई कायदे से मेरी जिंदगी में जिंदगी आये ............. बहुत सुन्दर शब्द दिए है आपने ... बहुत खूब ..... हिचकी आयी क्या ???

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