अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, April 24, 2012

"पाँव नंगे चप्पल है सरपर"

कमाऊ बेटे से
माँ की फटी एडियाँ,रुखी दरारें
शायद देखी ना गयीं होंगी ...........
सो ले आया उसके लिए
एक जोड़ी गुलाबी चप्पल
पर जिसने ता-जिंदगी नंगे पाँव बोझा ढोते काट दी हो
अपना सुख- श्रृंगार अपने परिवार में बाँट दी हो
भला वो चप्पल उसका दुःख कैसे बाँट सकता है
वो तो बस उसके पैरों को काट सकता है
फिर भी बेटे के सकून को वो .....
रोज घर से निकलती है चप्पल पहन कर
कुछ दूर चल कर चप्पलों को धर लेती है सर पर
वो चप्पल उसके बोझ में इक इजाफा सा है
पर बेटे की ख़ुशी के आगे वो बिलकुल जरा सा है
~s-roz ~

17 comments:

  1. माँ बेटे की खुशी के लिए यह बोझ भी सहर्ष उठा लेती है ... सुंदर प्रस्तुति

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  2. दोनों ही अपनी अपनी जगह सही.....दिल को छूती रचना सरोज जी

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    1. हार्दिक आभार आपका सरस जी !!

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  3. हाँ ...बेटा सुकून से होगा तो माँ कुछ भी सह लेगी.

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    1. हार्दिक आभार आपका शिखा जी !

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  4. बहुत ही बढ़िया

    सादर

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    1. हार्दिक आभार आपका यशवंत जी !

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  5. मन को छूते हुए भाव .. उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति।

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    1. हार्दिक आभार आपका सदा जी !

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    1. हार्दिक आभार आपका अनामिका जी !

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  7. माँ का मन ऐसा ही होता है !

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    1. हार्दिक आभार आपका प्रतिभा जी

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  8. संघर्ष का बोझ ... बहुत खूब .. !!

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    1. हार्दिक आभार आपका क्षितिजा जी

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  9. हार्दिक आभार आपका संगीता जी

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