अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, November 17, 2011

"दरख़्त "

मेरी दरख़्त के पोसे चूजों के
अब 'पर' फड़ फड़ाने लगे हैं
खुश लम्स शाखों की ओट
नाकाफी है उनके लिए
जाना तो होगा ही उन्हें
... मंजिल की तलाश में
शायद लौटकर आना
मुमकिन ना हो उनके लिए
इल्तजा यही है ......
जान-ए-अज़ीज़ चूजों से
राह में दिखे कोई तनहा दरख़्त
उसमे 'अक्स' मेरा ही देखना
~~~S-ROZ~~~

4 comments:

  1. उसमें अक्स मेरा ही देखना.....सुन्दर बात ,सरोज

    ReplyDelete
  2. बहुत ही उम्दा.....

    ReplyDelete
  3. Nidhi /Shushma ji aapki hausala afzai ka tahe dil se shukriya ...:)

    ReplyDelete
  4. वाह ...बहुत ही बढि़या ।

    ReplyDelete