अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, October 8, 2013

"रिश्ते व प्रेम "

आजकल घर
वातानुकूलित होते हैं
बदलते मौसम का असर
घर पर ............
नहीं होता !
ऐसे एकरस माहौल से
ऊब चुके रिश्ते .....
घर के बंद सांकलों में
अटक कर रह जाते हैं
और उनमे घुट घुट कर ...

जीता " प्रेम "
दरवाजे की महीन झिर्रियों से
बह निकलता है !!!
~s-roz~

6 comments:

  1. सच रिश्तों पर मौसम का रंग आजकल कुछ ज्यादा ही चढ़ा रहता है ..
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति .
    नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ

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    1. हार्दिक आभार कविता जी आपको भी नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  2. हार्दिक आभार सुषमा जी !

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  3. ha saroj ji right written. Bahut superb

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  4. दीदी इस पोस्ट की चर्चा, शुक्रवार, दिनांक :-18/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -27 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....नीरज पाल।

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  5. एकरसता प्रेम का दुश्मन है |अच्छा कहा |
    latest post महिषासुर बध (भाग २ )

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