अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, January 26, 2011

"याद आता है "

"अभी का कुछ नहीं,पर बचपने का हर मंज़र याद आता है
कभी अंगना  की किलकारी  कभी वो 'दर' याद आता है
"अक्सर नम हो आती हैं आखें यु ही बैठे बिठाये  
गुज़रा ,जहाँ बचपन वो गाँव का छप्पर  याद आता है  
सयानी हो रही बेटी को ही क्या हमें  भी
वो खिलौनों का पाना  वो गुड़ियों का'घर' याद आता है
भूले तमाम देश और शहर जो घूमे  अबतलक 
मगर बचपन की हर गली का हर एक 'पहर'याद आता है "
~~~S-ROZ~~~  

Tuesday, January 25, 2011

"हे भारत के पान्चजन्य जागो "


"सुसुप्त है गदा भीम की,अब भी मोहधीन है  पार्थ  !
"हे भारत के पान्चजन्य!अब तो समझो यथार्थ !
जागो ! संस्कृति के स्वाभिमान जगाने हेतु जागो  !
जागो !भारत भूमि की गौरव  महिमा बढ़ाने हेतु जागो!
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"हे मेरे गणतंत्र!! आज तू  देश की अस्मिता जगा दे !
शत्रु मर्दनी गरिमा लेकर,दरिद्रता,आतंक,अनाचार मिटा  दे !
'आज लगाकर निज ललाट पर तेरी रज का पावन चन्दन !
गणतंत्र दिवस के समुप्लक्ष्य में हम सब करते तेरा अभिनन्दन ! 
~~~S-ROZ~~~
 
 
 
 
 

Friday, January 14, 2011

"हे सीते !!!!'तुम' नारी जाति का 'अभिमान'

हे सीते !!
"साधा था तुमने 'शैशव'  में ही जिस'शिवधनुष' को

उसपर प्रत्यंचा चढाने का गौरव मिला'प्रभु राम' को

स्वयं  की शक्ति को समाहित कर बनी रही तुम!

उनके सन्मुख कोमल,स्निग्ध कंचन काया सहचरणी

सब सुख त्याग चली वन, संग उनकी अनुगामिनी

तुम थी उनकी 'ह्रदयदेवी' वो तुम्हारे 'प्रणयसेवी'

फिर दोनों के संप्रभुता में इतना अंतर क्यों हुआ ?

 प्रभु ने स्पर्श किया  तो 'अहिल्या त्राण' हुआ ,

फिर  तुम छू  गई तो क्यूँ 'अग्नि स्नान' हुआ ?

तुम्हारा  संयम फिर भी ना कम हुआ

अंतर की पीड़ा से भले ही आँख नम हुआ

प्रभु, थे मर्यादा पुरुषोत्तम  अपने राज्य के लिए

पर 'तुमको  को विवश किया'वनगमन' के लिए 

हे सीते! तुम फिर भी ना अविचल हुई ....

बनकर स्वालंबी जाया  तुमने 'लव और कुश '......

पाला व सबल बनाया  उन्हें बन कर्मयोगिनी

प्रभु वन आये जब साथ ले चलने अपने 'राज'

नहीं स्वीकारा तुमने उनका  रानी का' ताज '

हे पृथा!तुमने फिर  भी उन्हें नहीं  धिक्कारा!

तब दिखाया तुमने, अपना नारी 'स्वाभिमान'

सौम्यता से हाथ जोड़ हो गई धरा में 'अंतर्ध्यान'

जब तक और जहाँ तक यह धरा है 'विराजमान'

सदा सदा रहोगी 'तुम' नारी जाति का  'अभिमान'

~~~S-ROZ~~~

Sunday, January 9, 2011

"हे आदि देव


"हे  आदि  देव!
 साँझ ढलते,..तुम!!
"पश्चमी नभ के जलधि में
डूब जाते हो  ....पर !!
चन्द्रमा  की चित्रलिपि में
फिर भी जगमगाते हो ... "
कभी सदृश्य तुम कभी अदृश्य तुम
दोनों ही बिन्दुओं में हो प्रकाशक "
~~~S-ROZ~~~

Wednesday, January 5, 2011

"प्यार का पत्थर ,

"हमने हर इंसान के गुनाहों पर 
जलालतों  के पत्थर बड़े  फेकें हैं
पर क्या कभी एक प्यार का पत्थर ,
दिल के उस दरवाजे पर फेंका है,
जहाँ एक 'खुदा' सो रहा है ?
'वलियों' से सुनते आए हैं के
हर इंसान में 'खुदा' होता है ,
फिर हम क्यूँ उसके हैवानियत को हवा देते है?
उसके भीतर के खुदा को क्यूँ नहीं जगा देते है?
कही ना कही हम खुद भी गुनहगार है उसके " 
~~~S-ROZ~~~